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हँसते हँसते भी सोगवार हैं हम | शाही शायरी
hanste hanste bhi sogwar hain hum

ग़ज़ल

हँसते हँसते भी सोगवार हैं हम

ज़िया ज़मीर

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हँसते हँसते भी सोगवार हैं हम
ज़िंदगी किस के क़र्ज़-दार हैं हम

रूह पर जिस्म का लबादा है
इस लिए ही तो साया-दार हैं हम

उस ने देखा कुछ इस अदा से हमें
हम ये समझे कि शाहकार हैं हम

हम को इतना गिरा पड़ा न समझ
ऐ ज़माने किसी का प्यार हैं हम

आज तक ये समझ नहीं आया
जीत हैं किस की किस की हार हैं हम

हो कभी वक़्त तो ज़ियारत कर
ऐ मोहब्बत तिरा मज़ार हैं हम