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हँसो न तुम रुख़-ए-दुश्मन जो ज़र्द है यारो | शाही शायरी
hanso na tum ruKH-e-dushman jo zard hai yaro

ग़ज़ल

हँसो न तुम रुख़-ए-दुश्मन जो ज़र्द है यारो

शमीम करहानी

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हँसो न तुम रुख़-ए-दुश्मन जो ज़र्द है यारो
किसी का दर्द हो अपना ही दर्द है यारो

दिलों से शिकवा-ए-बाहम को दूर करने में
लगेगा वक़्त कि बरसों की गर्द है यारो

हम अहल-ए-शहर की फ़ितरत से ख़ूब वाक़िफ़ है
वो इक ग़रीब जो सहरा-नवर्द है यारो

जहाँ मता-ए-हुनर की ख़रीद होती थी
बहुत दिनों से वो बाज़ार सर्द है यारो

अजब नहीं कि बयाबाँ के होंट तर हो जाएँ
फ़ज़ा में आज समुंदर की गर्द है यारो

ख़ता किसी से हुई हो कोई भी मुजरिम हो
जवाब-दह तो यहाँ फ़र्द फ़र्द है यारो

ख़याल-ए-सूद न अंदेशा-ए-ज़ियाँ कोई
'शमीम' भी कोई आज़ाद मर्द है यारो