हँसना आह-ओ-फ़ुग़ाँ से सीखा है
ये हुनर भी जहाँ से सीखा है
हर ख़ुशी से नज़र चुरा लेना
इक अजब मेहरबाँ से सीखा है
दौड़ से ख़ुद को यूँ अलग रखना
मंज़िल-ए-बे-निशाँ से सीखा है
सब से कहना ख़ुशी के आँसू हैं
ये भरम आस्ताँ से सीखा है
ऐसे ख़ुद को अज़िय्यतें देना
तू ने 'फ़र्रुख़' कहाँ से सीखा है
ग़ज़ल
हँसना आह-ओ-फ़ुग़ाँ से सीखा है
इब्न-ए-उम्मीद