हँसे रोए फिरे रुस्वा हुए जागे बंधे छूटे
ग़रज़ हम ने भी क्या क्या कुछ मोहब्बत के मज़े लूटे
कलेजे में फफूले दिल में दाग़ और गुल हैं हाथों पर
खिले हैं देखिए हम में भी ये उल्फ़त के गुल-बूटे
तफ़ावुत कुछ नहीं गुलचीं में और बे-दर्द ख़ूबाँ में
जो उस के हाथ गुल टूटे तो इन के हाथ दिल टूटे
हज़ारों गालियाँ दीं फिर ज़रा हँस कर इधर देखा
भला इतनी तसल्ली से फफूले दिल के कब फूटे
कुचलते हो मुझे तुम मैं ये माँगूँ हूँ दुआ दिल में
कोई दिलबर मिरे आगे तुम्हें भी ख़ूब सा कूटे
ज़बाँ की कर के मिक़राज़ और बना दुश्नाम का काग़ज़
हमारे हक़ में क्या क्या आप ने कतरे हैं गुल-बूटे
ये कहते हैं कि आशिक़ छूट जाता है अज़िय्यत से
जब उस की उम्र को लश्कर अजल का आन कर लूटे
हमारी रूह तो फिरती है माशूक़ों की गलियों में
'नज़ीर' अब हम तो मर कर भी न इस जंजाल से छूटे
ग़ज़ल
हँसे रोए फिरे रुस्वा हुए जागे बंधे छूटे
नज़ीर अकबराबादी