हँस दे तो खिले कलियाँ गुलशन में बहार आए
वो ज़ुल्फ़ जो लहराएँ मौसम में निखार आए
मिल जाए कोई साथी हर ग़म को सुना डालें
बेचैन मिरा दिल है पल भर को क़रार आए
मदहोश हुआ दिल क्यूँ बेचैन है क्यूँ आँखें
हूँ दूर मय-ख़ाने से फिर क्यूँ ऐ ख़ुमार आए
खिल जाएँगी ये कलियाँ महबूब के आमद से
जिस राह से वो गुज़रे गुलशन में बहार आए
जिन जिन पे इनायत है जिन जिन से मोहब्बत है
उन चाहने वालो में मेरा भी शुमार आए
फूलों को सजाया है पलकों को बिछाया है
ऐ बाद-ए-सबा कह दे अब जाने बहार आए
बुलबुल में चहक तुम से फूलों में महक तुम से
रुख़्सार पे कलियों के तुम से ही निखार आए
ग़ज़ल
हँस दे तो खिले कलियाँ गुलशन में बहार आए
सलीम रज़ा रीवा