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हंगामे से वहशत होती है तन्हाई में जी घबराए है | शाही शायरी
hangame se wahshat hoti hai tanhai mein ji ghabrae hai

ग़ज़ल

हंगामे से वहशत होती है तन्हाई में जी घबराए है

रिफ़अत सरोश

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हंगामे से वहशत होती है तन्हाई में जी घबराए है
क्या जानिए क्या कुछ होता है जब याद किसी की आए है

जिन कूचों में सुख-चैन गया जिन गलियों में बदनाम हुए
दीवाना दिल उन गलियों में रह रह कर ठोकर खाए है

सावन की अँधेरी रातों में किस शोख़ की यादों का आँचल
बिजली की तरह लहराए है बादल की तरह उड़ जाए है

यादों के दर्पन टूट गए नज़रों में कोई सूरत ही नहीं
लेकिन बे-चेहरा माज़ी साया साया लहराए है

कुछ दुनिया भी बेज़ार है अब हम जैसे वहशत वालों से
कुछ अपना दिल भी दुनिया की इस महफ़िल में घबराए है

कलियों की क़बाएँ चाक हुईं फूलों के चेहरे ज़ख़्मी हैं
अब के ये बहारों का मौसम क्या रंग नया दिखलाए है

दीवार न दर सुनसान खंडर ऐसा उजड़ा ये दिल का नगर
तन्हाई के वीराने में आवाज़ भी ठोकर खाए है

ये मेरा कोई दम-साज़ न हो 'रिफ़अत' ये कोई हमराज़ न हो
जो मेरे गीत मिरी ग़ज़लें मेरी ही धुन में गाए है