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हमीं को भूल गए आप के भी क्या कहने | शाही शायरी
hamin ko bhul gae aap ke bhi kya kahne

ग़ज़ल

हमीं को भूल गए आप के भी क्या कहने

सरवत मुख़तार

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हमीं को भूल गए आप के भी क्या कहने
यक़ीं को भूल गए आप के भी क्या कहने

मिरे ख़याल को चोरी किया किया सो किया
ज़मीं को भूल गए आप के भी क्या कहने

मकाँ बनाते रहे बाम-ओ-दर सजाते रहे
मकीं को भूल गए आप के भी क्या कहने

असीर आम से चेहरे के हो के बैठे हैं
हसीं को भूल गए आप के भी क्या कहने

बजा कि हाथ को थामा बजा लिया बोसा
जबीं को भूल गए आप के भी क्या कहने

था ज़िक्र मुझ को भुलाने का हाँ ही बोल दिया
नहीं को भूल गए आप के भी क्या कहने