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हमें यूँही न सर-ए-आब-ओ-गिल बनाया जाए | शाही शायरी
hamein yunhi na sar-e-ab-o-gil banaya jae

ग़ज़ल

हमें यूँही न सर-ए-आब-ओ-गिल बनाया जाए

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

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हमें यूँही न सर-ए-आब-ओ-गिल बनाया जाए
हमारे ख़्वाब दिए जाएँ दिल बनाया जाए

दिखाई देता है तस्वीर-ए-जाँ में दोनों तरफ़
हमारा ज़ख़्म ज़रा मुंदमिल बनाया जाए

अगर जलाया गया है कहीं दिए से दिया
तो क्या अजब कि कभी दिल से दिल बनाया जाए

शदीद-तर है तसलसुल में हिज्र का मौसम
कभी मिलो कि उसे मो'तदिल बनाया जाए

ये नक़्श बन नहीं सकता तो क्या ज़रूरी है
ख़राब-ओ-ख़स्ता ओ ख़्वार-ओ-ख़जिल बनाया जाए