हमें तो अब के भी आई न रास तन्हाई
तुम्हीं बताओ कि है किस के पास तन्हाई
उसे भी अब के बहुत रंज-ए-नारसाई है
खड़ी है शहर की सरहद के पास तन्हाई
इसी लिए तो न सहरा में है न बस्ती में
कि हो न जाए कहीं बे-लिबास तन्हाई
तवील हिज्र ने दोनों को यूँ ख़राब किया
कि उस के पास न अब मेरे पास तन्हाई
अँधेरी रात में आँखों में ख़्वाब की सूरत
कभी कभी नज़र आई उदास तन्हाई
ग़ज़ल
हमें तो अब के भी आई न रास तन्हाई
महताब हैदर नक़वी