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हमें तक़्सीम करने का हुनर उन पर निराला है | शाही शायरी
hamein taqsim karne ka hunar un par nirala hai

ग़ज़ल

हमें तक़्सीम करने का हुनर उन पर निराला है

प्रमोद शर्मा असर

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हमें तक़्सीम करने का हुनर उन पर निराला है
मगर उन को हराने का इरादा हम ने पाला है

ज़माने भर के रंज-ओ-ग़म कभी मुझ को दिए उस ने
कभी जब लड़खड़ाया तो मुझे बढ़ कर सँभाला है

मखोटे वो सदा झूटे लगा कर हम से है मिलता
बहुत शातिर पड़ोसी है जनम से देखा-भाला है

किया जो बज़्म में ज़िक्र-ए-वफ़ा उन की तो वो बोले
नहीं जो मुद्दआ' उस बात को फिर क्यूँ उछाला है

किसी से क़र्ज़ ले कर शहर को फिर जाएगा 'हरिया'
अदालत ने जो इस का फ़ैसला ही कल पे टाला है

बिके हैं लोग देने को गवाही झूट के हक़ में
मगर सच जानते हैं जो उन्हीं के मुँह पे ताला है

बुराई ख़त्म करने को बुरों का हाथ भी थामा
'असर' काँटे से हम ने पावँ का काँटा निकाला है