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हमें कुछ और जीना है तो दिल को शाद रक्खेंगे | शाही शायरी
hamein kuchh aur jina hai to dil ko shad rakkhenge

ग़ज़ल

हमें कुछ और जीना है तो दिल को शाद रक्खेंगे

उबैद सिद्दीक़ी

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हमें कुछ और जीना है तो दिल को शाद रक्खेंगे
बहुत कुछ भूल जाएँगे बहुत कुछ याद रक्खेंगे

अभी कुछ और करतब देखने भी हैं दिखाने भी
तमाशा-गाह-ए-आलम हम तुझे आबाद रक्खेंगे

अगर घर का ख़याल आया तो रस्ता भूल जाएँगे
सफ़र में दश्त को जाते हुए हम याद रक्खेंगे

मुक़ाबिल आएँगे हर बार ताज़ा हौसला ले कर
तुझे हम आज़माइश में सितम-ईजाद रक्खेंगे

पुरानी हो गई दुनिया उसे मिस्मार करना है
नई तामीर की ख़ातिर नई बुनियाद रक्खेंगे