हमें कौन पूछे है साहिबो न सवाल में न जवाब में
न तो कोई आदमी जाने है न हिसाब में न किताब में
न तो इल्म अपने में है यहाँ कि ख़ुदा ने भेजा है किस लिए
इसी को जो कहते हैं ज़िंदगी सो तो जिस्म के है अज़ाब में
यही शक्ल है जिसे देखो हो यही वज़्अ है जिसे घूरो हो
जिसे जान कहते हैं आदमी उसे देखा आलम-ए-ख़्वाब में
मैं ख़िलाफ़ तुम से नहीं कहा इसे मानो या कि न मानो तुम
मैं ने अपनी आँखों से देखा मैं कि मिला हूँ उस की जनाब में
न सुनोगे 'सोज़' की गुफ़्तुगू जो फिरोगे ढूँडने कू-ब-कू
ये नशा है उस के बयान में कि नहीं नशा है शराब में

ग़ज़ल
हमें कौन पूछे है साहिबो न सवाल में न जवाब में
मीर सोज़