EN اردو
हमें कहती है दुनिया ज़ख़्म-ए-दिल ज़ख़्म-ए-जिगर वाले | शाही शायरी
hamein kahti hai duniya zaKHm-e-dil zaKHm-e-jigar wale

ग़ज़ल

हमें कहती है दुनिया ज़ख़्म-ए-दिल ज़ख़्म-ए-जिगर वाले

साइल देहलवी

;

हमें कहती है दुनिया ज़ख़्म-ए-दिल ज़ख़्म-ए-जिगर वाले
ज़रा तुम भी तो देखो हम को तुम भी हो नज़र वाले

नज़र आएँगे नक़्श-ए-पा जहाँ उस फ़ित्नागर वाले
चलेंगे सर के बल रस्ता वहाँ के रहगुज़र वाले

सितम-ईजादियों की शान में बट्टा न आ जाए
न करना भूल कर तुम जौर चर्ख़-ए-कीना-वर वाले

जफ़ा-ओ-जौर-ए-गुल-चीं से चमन मातम-कदा सा है
फड़कते हैं क़फ़स की तरह आज़ादी में पर वाले

अलिफ़ से ता-ब-या लिल्लाह अफ़्साना सुना दीजे
जनाब-ए-मूसा-ए-इमराँ वही हैरत-नगर वाले

हमें मालूम है हम मानते हैं हम ने सीखा है
दिल आज़ुर्दा हुआ करते हैं अज़ हद चश्म-ए-तर वाले

कटाने को गला आठों पहर मौजूद रहते हैं
वो दिल वाले जिगर वाले सही हम भी हैं सर वाले

तमाशा देख कर दुनिया का 'साइल' को हुई हैरत
कि तकते रह गए बद-गौहरों का मुँह गुहर वाले