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हमें बर्बादियों पे मुस्कुराना ख़ूब आता है | शाही शायरी
hamein barbaadiyon pe muskurana KHub aata hai

ग़ज़ल

हमें बर्बादियों पे मुस्कुराना ख़ूब आता है

चाँदनी पांडे

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हमें बर्बादियों पे मुस्कुराना ख़ूब आता है
अँधेरी रात में दीपक जलाना ख़ूब आता है

ग़लत-फ़हमी तुम्हें कुछ और आता हो न आता हो
अचानक आग पानी में लगाना ख़ूब आता है

ज़रा सी बात पे दीवार खिंचवाने लगा है वो
उसे भी राई का पर्बत बनाना ख़ूब आता है

तिरे हर झूठ को सच मान लेते हैं हमेशा हम
हमें भी रस्म-ए-उल्फ़त को निभाना ख़ूब आता है

किसी के सामने सर को झुकाते हम नहीं लेकिन
ख़ुदा के सामने सर को झुकाना ख़ूब आता है

तुम्हारे ग़म ने ही बख़्शी है हम को ये हुनर-मंदी
हमें अश्को को अब मोती बनाना ख़ूब आता है