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हमारी ज़ात में बस्ते सभी हैं | शाही शायरी
hamari zat mein baste sabhi hain

ग़ज़ल

हमारी ज़ात में बस्ते सभी हैं

उबैद हारिस

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हमारी ज़ात में बस्ते सभी हैं
हम अच्छे हैं तो फिर अच्छे सभी हैं

यक़ीं कैसे करें वादे पे तेरे
यही व'अदा है जो करते सभी हैं

दिखाई क्यूँ नहीं देता किसी को
ख़ुदा की खोज में निकले सभी हैं

मिरे अंदर फ़क़त क़तरा नहीं है
समुंदर झील और झरने सभी हैं

ज़मीं पर आएगा वो आसमाँ से
नज़ारा देखने ठहरे सभी हैं

चली थी इक हवा कुछ देर पहले
उसी के ख़ौफ़ से सहमे सभी हैं

सबक़ लेते नहीं हम क्यूँ किसी से
हमारे सामने क़िस्से सभी हैं