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हमारी वो वफ़ादारी कि तौबा | शाही शायरी
hamari wo wafadari ki tauba

ग़ज़ल

हमारी वो वफ़ादारी कि तौबा

हक़ीर

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हमारी वो वफ़ादारी कि तौबा
और उस की वो दिल-आज़ारी कि तौबा

मुझे अब मौत बेहतर ज़िंदगी से
वो की तुम ने सितमगारी कि तौबा

तिरी ज़ुल्फ़ों ने सुम्बुल को चमन में
पकड़ कर मार वो मारी कि तौबा

न ख़ुद सोया दिया उन को न सोने
वो शब भर मैं ने की ज़ारी कि तौबा

'हक़ीर' इस दिल के हाथों मैं ने अब के
उठाई ऐसी बीमारी कि तौबा