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हमारी तबाही में कुछ उस का एहसाँ भी है | शाही शायरी
hamari tabahi mein kuchh us ka ehsan bhi hai

ग़ज़ल

हमारी तबाही में कुछ उस का एहसाँ भी है

साक़ी फ़ारुक़ी

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हमारी तबाही में कुछ उस का एहसाँ भी है
जो दर्द इन दिनों वज्ह आराइश-ए-जाँ भी है

यही फ़स्ल कलियाँ झुलसती हैं जिस फ़स्ल में
सुना है नया नाम इस का बहाराँ भी है

बिखेरा गया है लहू उन के ए'ज़ाज़ में
बहारों में ख़ुश्बू-ए-ख़ून-शहीदाँ भी है

उन आँखों की तक़दीर अब अश्क-रेज़ी हुई
और अश्कों की तक़दीर में रंग-ए-मर्जां भी है

अगर रात कट जाए तो ख़ुश-नसीबी कहो
फ़ज़ाओं में अंदेशा-ए-बाद-ओ-बाराँ भी है