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हमारी बात का उल्टा असर न पड़ जाए | शाही शायरी
hamari baat ka ulTa asar na paD jae

ग़ज़ल

हमारी बात का उल्टा असर न पड़ जाए

काशिफ़ हुसैन ग़ाएर

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हमारी बात का उल्टा असर न पड़ जाए
ये दिल का बोझ कहीं जान पर न पड़ जाए

तमाम रात सुलगता हूँ और सोचता हूँ
किसी चराग़ की मुझ पर नज़र न पड़ जाए

इसी ख़याल से ज़ख़्मों की रू-नुमाई न की
कि इम्तिहाँ में कहीं चारा-गर न पड़ जाए

फिर इस के ब'अद कहाँ जाएँगे ये साया-पसंद
इधर की धूप किसी दिन उधर न पड़ जाए

लगी तो है ये बराबर मिरे तआक़ुब में
गले हवा के कहीं ये सफ़र न पड़ जाए

ये दश्त-ए-इश्क़ है ग़ाएर ज़रा ख़याल रहे
तुम्हारा पाँव किसी दिन इधर न पड़ जाए