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हमारे क़ौल ओ अमल में तज़ाद कितना है | शाही शायरी
hamare qaul o amal mein tazad kitna hai

ग़ज़ल

हमारे क़ौल ओ अमल में तज़ाद कितना है

मुर्तज़ा बिरलास

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हमारे क़ौल ओ अमल में तज़ाद कितना है
मगर ये दिल है कि ख़ुश-ए'तिक़ाद कितना है

कि जैसे रंग ही ले आएगा लहू अपना
वफ़ा पे अपनी हमें ए'तिमाद कितना है

ये जानता है कि वादा-शिकन है वो फिर भी
दिल उस के वादा-ए-फ़र्दा पे शाद कितना है

वो जिस ने मुझ को फ़रामोश कर दिया यकसर
वो शख़्स मुझ को मगर अब भी याद कितना है

है अब तो सारे मरासिम का इंहिसार उस पर
किसी की ज़ात से हम को मफ़ाद कितना है

हर एक सोच है आलूदा-ए-हवस यारो
रगों में क़तरा-ए-ख़ूँ का फ़साद कितना है

है यूँ तो मेरे रक़ीबों में इख़्तिलाफ़ बहुत
मिरे ख़िलाफ़ मगर इत्तिहाद कितना है