EN اردو
हमारे लहजे में बेहतर है इंकिसारी हो | शाही शायरी
hamare lahje mein behtar hai inkisari ho

ग़ज़ल

हमारे लहजे में बेहतर है इंकिसारी हो

अनवर कैफ़ी

;

हमारे लहजे में बेहतर है इंकिसारी हो
मगर ज़बाँ पे जो बात आए सब पे भारी हो

किसी को ठेस न पहुँचे ये अपनी कोशिश है
मगर लगे जो किसी दिल पे ज़र्ब कारी हो

रह-ए-हयात में शायद ही वो मक़ाम आए
कि नग़्मा-हा-ए-जुनूँ पर सुकूत तारी हो

वफ़ा का ज़िक्र अगर आए उस की महफ़िल में
तो बात जो भी हो जैसी हो बस हमारी है

तमाम-उम्र गुज़ारी है उस की ख़िदमत में
हमारे नाम का सिक्का अदब में जारी हो

तिरे करम से हमेशा ही ख़ुश रहा 'अनवर'
मिरे ख़ुदा न कभी लब पे आह-ओ-ज़ारी हो