हमारे ख़्वाब कुछ इनइकास लगता है
ये आदमी तो हमें रू-शनास लगता है
गुज़ारिशात भी बाइस थीं बरहमी का कभी
अब उस का हुक्म भी इक इल्तिमास लगता है
जो अपने नाम से तहरीर उस ने भेजी है
हमारे ख़त का कोई इक़्तिबास लगता है
बिला-सबब ये करे बद-गुमान क्यूँ आख़िर
दुरुस्त! नासेह! क़याफ़ा-शनास लगता है
वो हम से तर्क-ए-तअल्लुक़ पे अब है आमादा
हमें तो आप का ये इक क़यास लगता है
ख़ुदा करे कि हमें वो दुआ न कोई दे
हमें तो कोसना ही उस का रास लगता है
तराशें पैरहन अब कुछ नई ज़मीनों में
दरीदा शेर का पिछ्ला लिबास लगता है
ये दौर कैसा है जिस शख़्स से भी मिलना हो
परेशाँ-हाल शिकस्ता उदास लगता है
बताएँ आप को क्या है 'मतीन' की पहचान
सरापा दर्द है तस्वीर-ए-यास लगता है
ग़ज़ल
हमारे ख़्वाब कुछ इनइकास लगता है
सय्यद फ़ज़लुल मतीन