हमारे हाल पे किस दिन जफ़ा नहीं करते
ये और बात कि वो बरमला नहीं करते
ये रंग-ओ-नूर की दुनिया नज़र-नवाज़ सही
तिरे फ़क़ीर मगर ए'तिना नहीं करते
ज़रूर कोई ख़ता हम से हो गई होगी
वो बे-सबब तो किसी पर जफ़ा नहीं करते
कभी तो उन को हमारा ख़याल आएगा
हम इस उम्मीद पे तर्क-ए-वफ़ा नहीं करते
उन्हीं से हम को मोहब्बत की दाद है मतलूब
वही जो पास-ए-मोहब्बत ज़रा नहीं करते
दर-ए-हबीब पे जाते हैं बारहा 'शफ़क़त'
दर-ए-हबीब पे लेकिन सदा नहीं करते
ग़ज़ल
हमारे हाल पे किस दिन जफ़ा नहीं करते
शफ़क़त काज़मी