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हमारे दिल पे जो ज़ख़्मों का बाब लिक्खा है | शाही शायरी
hamare dil pe jo zaKHmon ka bab likkha hai

ग़ज़ल

हमारे दिल पे जो ज़ख़्मों का बाब लिक्खा है

मंज़र भोपाली

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हमारे दिल पे जो ज़ख़्मों का बाब लिक्खा है
इसी में वक़्त का सारा हिसाब लिक्खा है

कुछ और काम तो हम से न हो सका लेकिन
तुम्हारे हिज्र का इक इक अज़ाब लिक्खा है

सुलूक नश्तरों जैसा न कीजिए हम से
हमेशा आप को हम ने गुलाब लिक्खा है

तिरे वजूद को महसूस उम्र भर होगा
तिरे लबों पे जो हम ने जवाब लिक्खा है

हुआ फ़साद तो इस में नहीं किसी का क़ुसूर
हवा-ए-शहर ने मौसम ख़राब लिक्खा है

अगर यक़ीन नहीं तो उठाइए तारीख़
हमारा नाम ब-सद-आब-ओ-ताब लिक्खा है