हमारे दिल पे जो ज़ख़्मों का बाब लिक्खा है 
इसी में वक़्त का सारा हिसाब लिक्खा है 
कुछ और काम तो हम से न हो सका लेकिन 
तुम्हारे हिज्र का इक इक अज़ाब लिक्खा है 
सुलूक नश्तरों जैसा न कीजिए हम से 
हमेशा आप को हम ने गुलाब लिक्खा है 
तिरे वजूद को महसूस उम्र भर होगा 
तिरे लबों पे जो हम ने जवाब लिक्खा है 
हुआ फ़साद तो इस में नहीं किसी का क़ुसूर 
हवा-ए-शहर ने मौसम ख़राब लिक्खा है 
अगर यक़ीन नहीं तो उठाइए तारीख़ 
हमारा नाम ब-सद-आब-ओ-ताब लिक्खा है
        ग़ज़ल
हमारे दिल पे जो ज़ख़्मों का बाब लिक्खा है
मंज़र भोपाली

