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हमारे दिल में मचलेगी किसी की आरज़ू कब तक | शाही शायरी
hamare dil mein machlegi kisi ki aarzu kab tak

ग़ज़ल

हमारे दिल में मचलेगी किसी की आरज़ू कब तक

सत्यपाल जाँबाज़

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हमारे दिल में मचलेगी किसी की आरज़ू कब तक
जुनून-ए-इश्क़ में भटकेंगे हम यूँ कू-ब-कू कब तक

ये क्या मंज़िल न आएगी हमारे रू-ब-रू कब तक
रहेंगे दश्त-ए-ग़ुर्बत में असीर-ए-जुस्तजू कब तक

ग़म-ए-हस्ती का भी कुछ तो मुदावा ढूँढना होगा
ग़म-ए-हस्ती मिटाएँगे भला जाम-ओ-सुबू कब तक

बहारों की है आमद का जिन्हें दा'वा वो बतलाएँ
चमन में आएगी आख़िर बहार-ए-रंग-ओ-बू कब तक

बला-नोशों को आता है तरीक़-ए-ज़िंदगी नासेह
जनाब-ए-शैख़ सीखेंगे तरीक़-ए-गुफ़्तुगू कब तक

कभी तो आरज़ू बर आएगी जाँबाज़ अपनी भी
बिल-आख़िर अपने अश्कों से करेंगे हम वुज़ू कब तक