EN اردو
हमारे दरमियाँ अहद-ए-शब-ए-महताब ज़िंदा है | शाही शायरी
hamare darmiyan ahd-e-shab-e-mahtab zinda hai

ग़ज़ल

हमारे दरमियाँ अहद-ए-शब-ए-महताब ज़िंदा है

नोशी गिलानी

;

हमारे दरमियाँ अहद-ए-शब-ए-महताब ज़िंदा है
हवा चुपके से कहती है अभी इक ख़्वाब ज़िंदा है

ये किस की नर्म ख़ुशबू है मिरी शब की हवेली में
ये कैसा रक़्स-ए-मस्ती ऐ दिल-ए-बेताब ज़िंदा है

कहाँ वो साँवली शामें कहाँ वो रेशमी बातें
मगर इक लम्स-ए-हैराँ का अभी ज़रनाब ज़िंदा है

अभी तक पानियों में सुरमई साए उतरते हैं
अभी तक धड़कनों में दर्द की मिज़राब ज़िंदा है

सिरात-ए-इश्क़ है और हिज्र की तन्हा मसाफ़त है
वही है तिश्नगी फिर भी फ़रेब-ए-आब ज़िंदा है