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हमारा अश्क नहीं है ये क़दर-ए-गौहर है | शाही शायरी
hamara ashk nahin hai ye qadr-e-gauhar hai

ग़ज़ल

हमारा अश्क नहीं है ये क़दर-ए-गौहर है

नूर मोहम्मद नूर

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हमारा अश्क नहीं है ये क़दर-ए-गौहर है
शिकस्त ज़ब्त न कहिए उसे ये जौहर है

उसी ने धोए हैं दामन के दाग़ ऐ हमदम
उसी का आज भी पत्थर के दिल में कुछ डर है

हदीस-ए-रंज-ओ-अलम से डरा न ऐ नासेह
हदीस-ए-रंज-ओ-अलम ही तो आज घर घर है

ख़ुदाया इस से ज़्यादा हुआ तो क्या होगा
निज़ाम-ए-ज़ीस्त बहुत आज-कल मुकद्दर है

सर-ए-नियाज़ की जिस को सदा तलाश रही
अगर मिले जो मुक़द्दर से आप का दर है

तुम्हारे जल्वे पे मौक़ूफ़ है निज़ाम-ए-हयात
अगरचे तूर का क़िस्सा मुझे भी अज़बर है

फ़रेब खा के भी वा'दों पे ए'तिबार ऐ 'नूर'
अजब शुऊर-ए-वफ़ा तेरा मेरे दिलबर है