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हमा-तन गोश इक ज़माना था | शाही शायरी
hama-tan gosh ek zamana tha

ग़ज़ल

हमा-तन गोश इक ज़माना था

ताबिश देहलवी

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हमा-तन गोश इक ज़माना था
मेरे लब पर तिरा फ़साना था

काश दिल ही ज़रा ठहर जाता
गर्दिशों में अगर ज़माना था

हम थे और ए'तिमाद-ए-फ़स्ल-ए-बहार
शाख़ शाख़ अपना आशियाना था

वो बहारें भी हम पे गुज़री हैं
जब क़फ़स था न आशियाना था

दिल की उम्मीदवारियाँ न गईं
उस करम का कोई ठिकाना था

सुब्ह से पहले बुझ गया 'ताबिश'
एक दिल ही चराग़-ए-ख़ाना था