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हम ज़िंदगी-शनास थे सब से जुदा रहे | शाही शायरी
hum zindagi-shanas the sab se juda rahe

ग़ज़ल

हम ज़िंदगी-शनास थे सब से जुदा रहे

शहपर रसूल

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हम ज़िंदगी-शनास थे सब से जुदा रहे
बस्ती में हौल आया तो जंगल में जा रहे

कमरे में मेरे धूप का आना ब-वक़्त-ए-सुब्ह
आँखों में काश एक ही मंज़र बसा रहे

फिर आज मेरे दर्द ने मुझ को मना लिया
कोई किसी अज़ीज़ से कब तक ख़फ़ा रहे

कब तक किसी पड़ाव पे वहशत करे क़याम
कब तक किसी के हिज्र का साया घना रहे

बाबा ये मुझ हक़ीर को इतनी बड़ी दुआ
तू बात का धनी है तिरा क़द सिवा रहे

'शहपर' सदा-ए-वक़्त से कर लो मुसालहत
महरूमियों के दर पे कोई क्यूँ पड़ा रहे