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हम वफ़ा करते हैं हम पर जौर कोई क्यूँ करे | शाही शायरी
hum wafa karte hain hum par jaur koi kyun kare

ग़ज़ल

हम वफ़ा करते हैं हम पर जौर कोई क्यूँ करे

मुज़्तर ख़ैराबादी

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हम वफ़ा करते हैं हम पर जौर कोई क्यूँ करे
जब है बे-ग़ौरी तो ये भी ग़ौर कोई क्यूँ करे

इल्तिजा-ए-वस्ल पर महशर में वो कहने लगे
अपने वा'दे की वफ़ा फ़िल-फ़ौर कोई क्यूँ करे

बात किस की बात मेरी कौन 'मुज़्तर' ध्यान दे
हाल किस का हाल मेरा ग़ौर कोई क्यूँ करे