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हम उम्र के साथ हैं सफ़र में | शाही शायरी
hum umr ke sath hain safar mein

ग़ज़ल

हम उम्र के साथ हैं सफ़र में

मुज़्तर ख़ैराबादी

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हम उम्र के साथ हैं सफ़र में
बैठे हुए जा रहे हैं घर में

हम लुट गए तेरी रहगुज़र में
ये एक हुई है उम्र-भर में

अब कौन रहा कि जिस को देखूँ
इक तू था सो आ गया नज़र में

हसरत को मिला है ख़ाना-ए-दिल
तक़दीर खुली ग़रीब घर में

आँखें न चुराओ दिल में रह कर
चोरी न करो ख़ुदा के घर में

अब वस्ल की रात हो चुकी ख़त्म
लो छुप रहो दामन-ए-सहर में

मैं आप ही उन से बोलता हूँ
बैठा हूँ ज़बान-ए-नामा-बर में

'मुज़्तर' करो दिल ही दिल में शिकवे
रह जाएगी बात घर की घर में