हम तुझ से कोई बात भी करने के नहीं थे 
इम्कान भी हालात सँवरने के नहीं थे 
भर डाला उन्हें भी मिरी बेदार नज़र ने 
जो ज़ख़्म किसी तौर भी भरने के नहीं थे 
ऐ ज़ीस्त इधर देख कि हम ने तिरी ख़ातिर 
वो दिन भी गुज़ारे जो गुज़रने के नहीं थे 
कल रात तिरी याद ने तूफ़ाँ वो उठाया 
आँसू थे कि पलकों पे ठहरने के नहीं थे 
उन को भी उतारा है बड़े शौक़ से हम ने 
जो नक़्श अभी दिल में उतरने के नहीं थे 
ऐ गर्दिश-ए-अय्याम हमें रंज बहुत है 
कुछ ख़्वाब थे ऐसे कि बिखरने के नहीं थे
        ग़ज़ल
हम तुझ से कोई बात भी करने के नहीं थे
ज़करिय़ा शाज़

