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हम तो जैसे वहाँ के थे ही नहीं | शाही शायरी
hum to jaise wahan ke the hi nahin

ग़ज़ल

हम तो जैसे वहाँ के थे ही नहीं

जौन एलिया

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हम तो जैसे वहाँ के थे ही नहीं
बे-अमाँ थे अमाँ के थे ही नहीं

हम कि हैं तेरी दास्ताँ यकसर
हम तिरी दास्ताँ के थे ही नहीं

उन को आँधी में ही बिखरना था
बाल ओ पर आशियाँ के थे ही नहीं

अब हमारा मकान किस का है
हम तो अपने मकाँ के थे ही नहीं

हो तिरी ख़ाक-ए-आस्ताँ पे सलाम
हम तिरे आस्ताँ के थे ही नहीं

हम ने रंजिश में ये नहीं सोचा
कुछ सुख़न तो ज़बाँ के थे ही नहीं

दिल ने डाला था दरमियाँ जिन को
लोग वो दरमियाँ के थे ही नहीं

उस गली ने ये सुन के सब्र किया
जाने वाले यहाँ के थे ही नहीं