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हम सितारों में तिरा अक्स ना ढलने देंगे | शाही शायरी
hum sitaron mein tera aks na Dhalne denge

ग़ज़ल

हम सितारों में तिरा अक्स ना ढलने देंगे

अम्बरीन सलाहुद्दीन

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हम सितारों में तिरा अक्स ना ढलने देंगे
चाँद को शाम की दहलीज़ पे जलने देंगे

आज छू लेंगे कोई अर्श मिरे वहम-ओ-गुमाँ
ख़्वाब को नींद की आँखों में मचलने देंगे

हम भी देखेंगे कहाँ तक है रसाई अपनी
दिल को बहलाएँगे हम और ना सँभलने देंगे

शब की आग़ोश में फैलें न गुमाँ के साए
अब निगाहों में कोई ख़ौफ़ ना पलने देंगे

हो न जाए कहीं अंजाम से पहले अंजाम
इस कहानी को इसी तौर से चलने देंगे

अक्स-दर-अक्स मिलेंगे तुझे मंज़र मंज़र
तू जो चाहे भी कहाँ तुझ को बदलने देंगे

नक़्श-दर-नक़्श हुए जाएँगे बस ख़ाक यहीं
ख़ूद को इस दश्त-ए-गुमाँ से ना निकलने देंगे