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हम शायद कुछ ढूँड रहे थे याद आया तो रोते हैं | शाही शायरी
hum shayad kuchh DhunD rahe the yaad aaya to rote hain

ग़ज़ल

हम शायद कुछ ढूँड रहे थे याद आया तो रोते हैं

शाज़ तमकनत

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हम शायद कुछ ढूँड रहे थे याद आया तो रोते हैं
ताज़ा ताज़ा उस को खो कर जाने क्या क्या खोते हैं

एक तरफ़ ये दुनिया-दारी एक तरफ़ वो ख़ल्वत-ए-ग़म
दुनिया वालो हर महफ़िल में देखो हम भी होते हैं

पहली किरन का धड़का क्या क्या दिल को मसकता जाए है
भोर भए जब कुंज में ग़ुंचे मुँह शबनम से धोते हैं

तुझ को तिरे गुल फूल मुबारक याँ ज़िद ठहरी जीने से
हम तो अपनी राह में प्यारे चुन चुन काँटे बोते हैं

तेरे दुख-सुख तू ही जाने हम ने बस इतना जाना है
तुझ से पहले जाग उठते हैं तेरे बा'द ही सोते हैं

सेज को सूना कर गए ख़ूबाँ शिकन शिकन फ़रियाद करे
पहलू पहलू चौंक उठे हम करवट करवट रोते हैं

उस ने बाग़ से जाते जाते मौसम-ए-गुल भी बाँध लिया
'शाज़' को देखो दीवाने हैं बैठे हार पिरोते हैं