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हम से तो किसी काम की बुनियाद न होवे | शाही शायरी
humse to kisi kaam ki buniyaad na howe

ग़ज़ल

हम से तो किसी काम की बुनियाद न होवे

मीर हसन

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हम से तो किसी काम की बुनियाद न होवे
जब तक कि उधर ही से कुछ इमदाद न होवे

हम को भी नहीं चैन तिरे ग़मज़ों से दिलबर
जब तक कि नया इक सितम ईजाद न होवे

ऐ आह ज़रा उठियो तो आहिस्ता कि वो जो
थोड़ा सा असर है कहीं बर्बाद न होवे

दी थी ये दुआ किस ने मिरे दिल को इलाही
उजड़े ये घर ऐसा कि फिर आबाद न होवे

देखा न किसी वक़्त मैं हँसते हुए उस को
ये भी कोई दिल है जो कभी शाद न होवे

भूले से भी भूलो न कभी ग़ैरों का तुम नाम
और नाम हमारा ही तुम्हें याद न होवे

क्यूँ देखो हो उस का क़द-ओ-रू बुलबुल-ओ-क़ुमरी
क्या समझे हो तुम ये गुल-ओ-शमशाद न होवे

मर जाएँ क़फ़स में यूँ ही हम आह तड़प कर
इतनी जो ख़बर लेने को सय्याद न होवे

दिल जल के जहाँ सुर्मा हुआ क़ैस का अब तक
उस जा पे जरस पहुँचे तो फ़रियाद न होवे

मेरे लिए क़ातिल भी अगर होवे तो होवे
पर ग़ैर के हक़ में तो वो जल्लाद न होवे

वारस्ता जो हो क़ैद से हस्ती के तो बेहतर
पर दाम से तेरे 'हसन' आज़ाद न होवे