हम से तो किसी काम की बुनियाद न होवे
जब तक कि उधर ही से कुछ इमदाद न होवे
हम को भी नहीं चैन तिरे ग़मज़ों से दिलबर
जब तक कि नया इक सितम ईजाद न होवे
ऐ आह ज़रा उठियो तो आहिस्ता कि वो जो
थोड़ा सा असर है कहीं बर्बाद न होवे
दी थी ये दुआ किस ने मिरे दिल को इलाही
उजड़े ये घर ऐसा कि फिर आबाद न होवे
देखा न किसी वक़्त मैं हँसते हुए उस को
ये भी कोई दिल है जो कभी शाद न होवे
भूले से भी भूलो न कभी ग़ैरों का तुम नाम
और नाम हमारा ही तुम्हें याद न होवे
क्यूँ देखो हो उस का क़द-ओ-रू बुलबुल-ओ-क़ुमरी
क्या समझे हो तुम ये गुल-ओ-शमशाद न होवे
मर जाएँ क़फ़स में यूँ ही हम आह तड़प कर
इतनी जो ख़बर लेने को सय्याद न होवे
दिल जल के जहाँ सुर्मा हुआ क़ैस का अब तक
उस जा पे जरस पहुँचे तो फ़रियाद न होवे
मेरे लिए क़ातिल भी अगर होवे तो होवे
पर ग़ैर के हक़ में तो वो जल्लाद न होवे
वारस्ता जो हो क़ैद से हस्ती के तो बेहतर
पर दाम से तेरे 'हसन' आज़ाद न होवे
ग़ज़ल
हम से तो किसी काम की बुनियाद न होवे
मीर हसन