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हम से रुख़्सार वो लब भूल गए | शाही शायरी
humse ruKHsar wo lab bhul gae

ग़ज़ल

हम से रुख़्सार वो लब भूल गए

ऐन सलाम

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हम से रुख़्सार वो लब भूल गए
ज़िंदगी करने का ढब भूल गए

रात-दिन महव रहा करते थे
जाने क्या थी वो तलब भूल गए

आ गया सर पे ढलता सूरज
रात के शोर-ओ-शग़ब भूल गए

रंज-ए-महरूमी-ए-दिल याद रहा
रौनक़-ए-बज़्म-ए-तरब भूल गए

नक़्श-ए-दीवार बने बैठे हैं
याद इतना है कि सब भूल गए

ज़िंदगी बिगड़ी तो ऐसी बिगड़ी
जो भी थे रंज-ओ-तअब भूल गए

दिल में क्या क्या न थे अरमान 'सलाम'
शुक्र सद शुक्र कि सब भूल गए