हम से किस का काम बनेगा कोई क्या ले जाएगा
अपना छप्पर फूँकने वाला पास हमारे आएगा
हम हैं निगोड़े हम हैं भगोड़े हम हैं निकम्मे हम काहिल
जिस दम महफ़िल रंग पे होगी हम से रहा न जाएगा
ग़ुंचा ग़ुंचा ज़हर-आलूदा बूटा बूटा साग़र-ए-सम
इस गुलशन में इश्क़ का नग़्मा छेड़ तो माना जाएगा
वाए क़यामत सर है सलामत सूने पड़े हैं दार-ओ-रसन
हम को बाग़ी कौन कहेगा रहबर कौन बनाएगा
'सोज़' हमारे बअ'द जहाँ को याद हमारी आएगी
ख़स्ता दिलों की आह-ओ-बुका को बिजली कौन बनाएगा

ग़ज़ल
हम से किस का काम बनेगा कोई क्या ले जाएगा
कान्ती मोहन सोज़