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हम रह गए हमारा ख़लल क्यूँ नहीं रहा | शाही शायरी
hum rah gae hamara KHalal kyun nahin raha

ग़ज़ल

हम रह गए हमारा ख़लल क्यूँ नहीं रहा

शाहीन अब्बास

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हम रह गए हमारा ख़लल क्यूँ नहीं रहा
मुश्किल का एक हल था वो हल क्यूँ नहीं रहा

मुड़ मुड़ के देखता हूँ वहीं का वहीं ग़ुबार
मैं चल रहा हूँ रास्ता चल क्यूँ नहीं रहा

मौज़ूअ' को बदलता हूँ सफ़्हे उलटता हूँ
मज़मून क्या बताऊँ बदल क्यूँ नहीं रहा

मेरे और उस के बीच शब-ए-आख़िरीं का दाग़
इक आख़िरी चराग़ है जल क्यूँ नहीं रहा

मैं ने कहा ख़ुदा से ख़ुदा ने कहा मुझे
घर से कोई गली में निकल क्यूँ नहीं रहा