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हम क़ुव्वत-ए-जज़्ब-ए-दिल दिखाएँ | शाही शायरी
hum quwwat-e-jazb-e-dil dikhaen

ग़ज़ल

हम क़ुव्वत-ए-जज़्ब-ए-दिल दिखाएँ

शहाबुद्दीन साक़िब

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हम क़ुव्वत-ए-जज़्ब-ए-दिल दिखाएँ
और फिर वो हमारे घर न आएँ

क्या चीर के सीना-ए-दिल दिखाएँ
कुछ हाल सुनो तो हम सुनाएँ

ऐ बख़्त कहाँ तलक बुराई
ऐ चर्ख़ कहाँ तलक जफ़ाएँ

हम सीना-सिपर किए खड़े हैं
वो शौक़ से ख़ंजर आज़माएँ

जो काम में ग़ैर के हुईं सर्फ़
अफ़्सोस वो दिल-रुबा अदाएँ

शायद कि है गर्म-ए-नाला 'साक़िब'
चलती हैं शरर-फ़िशाँ हवाएँ