EN اردو
हम पर जितने वार हुए भरपूर हुए | शाही शायरी
hum par jitne war hue bharpur hue

ग़ज़ल

हम पर जितने वार हुए भरपूर हुए

शकील ग्वालिआरी

;

हम पर जितने वार हुए भरपूर हुए
हम से पूछो कैसे चकनाचूर हुए

संजीदा लोगों का जीना मुश्किल है
खेल तमाशे दुनिया का दस्तूर हुए

मेरी नज़र में जैसे पहले थे अब हो
कौन सी दौलत पा कर तुम मग़रूर हुए

ये तो गुलिस्तानों में रोज़ के क़िस्से हैं
फूल खिले खिल कर शाख़ों से दूर हुए

हम ने 'शकील' इक छोटी सी नादानी से
शोहरत पाई ख़ूब बहुत मशहूर हुए