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हम ने सौ सौ तरह बनाई बात | शाही शायरी
humne sau sau tarah banai baat

ग़ज़ल

हम ने सौ सौ तरह बनाई बात

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

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हम ने सौ सौ तरह बनाई बात
सामने उस के बन न आई बात

सच तो कहता है दोस्त दुश्मन है
हम ने नासेह की आज़माई बात

बात के काटने का शिकवा क्या
हो जहाँ क़त्अ आश्नाई बात

वा'दे पर उस से क्यूँ क़सम माँगे
मुफ़्त बिगड़ी बनी बनाई बात

हम को दुश्मन से हो गई मालूम
दोस्त ने हम से जो छुपाई बात

क्या शब-ए-वस्ल को घटाना है
ग़म हिज्राँ की क्यूँ बढ़ाई बात

ये भी उन के दहन की ख़ूबी है
कि समझ में मिरी न आई बात

शहर से क्यूँ करें वो अज़्म-ए-सफ़र
हम-नशीं तू ने क्या उड़ाई बात

वाँ से जा कर ख़बर नहीं लाया
है कहीं की सुनी सुनाई बात

भेद अपनों से भी न कह 'नाज़िम'
मुँह से निकली हुई पराई बात