हम ने मोहकम जिन्हें जाना वो सितारे टूटे
मौज साहिल से जो गुज़री तो किनारे टूटे
अहल-ए-दिल सोच रहे हैं ये बड़े कर्ब के साथ
हम ही ज़ंजीर हुए दिल भी हमारे टूटे
आज हर ज़ेहन में रौशन में तफ़क्कुर के चराग़
दिल वो शो'ला है कि जिस से ये शरारे टूटे
आप ने जिन पे नज़र की वही ज़र्रे चमके
हम जिन्हें देख रहे थे वो सितारे टूटे

ग़ज़ल
हम ने मोहकम जिन्हें जाना वो सितारे टूटे
सईदुज़्ज़माँ अब्बासी