हम ने ख़तरा मोल लिया नादानी में
ख़ुद को छोड़ा अपनी ही निगरानी में
अपने ज़ोम में कितने सूरज डूब गए
घर से चले थे आग लगाने पानी में
उस को पूजा जिस का होना भी मश्कूक
एक ज़ाविया ये भी है हैरानी में
शायद ये बस्ती भी अब बिक जाएगी
आई यहाँ भी तेल की ख़ुशबू पानी में
जमा हुआ था उन आँखों में एक सवाल
किस ने मिलाया ज़हर मिरी गुड़-धानी में
ग़ज़ल
हम ने ख़तरा मोल लिया नादानी में
सुबोध लाल साक़ी