हम ने जो उस की मिदहतों से कान भर दिए
गोया कि कान लाल किया कान भर दिए
क्या क्या जफ़ाएँ उस बुत-ए-बद-केश की कहूँ
मज्लिस में सैकड़ों ही मुसलमान भर दिए
मा'मूर हो गया तिरी दावत से सब मकाँ
इत्र और पान फूल से दालान भर दिए
ख़ाली लताफ़तों से तलव्वुन तिरा नहीं
सानेअ' ने तुझ में रंग सब ऐ जान भर दिए
ऐ 'मेहर' हुस्न-ए-लुत्फ़-ए-मज़ामीं कुछ और है
यूँ तो सभों ने शे'रों से दीवान भर दिए
ग़ज़ल
हम ने जो उस की मिदहतों से कान भर दिए
सय्यद अाग़ा अली महर