हम ने जलते हुए ख़ेमों की वो शामें रख दीं
शे'र में लफ़्ज़ रखे लफ़्ज़ में चीख़ें रख दीं
मैं ने भी उस को दिया पहली मुलाक़ात में दिल
मेरे दामन में भी उस ने मिरी ग़ज़लें रख दीं
यूँ लगा आँख बचाने पे झपकती है पलक
उसी तस्वीर पे मैं ने भी निगाहें रख दीं
रौशनी के हर इक इम्कान पे डाला पर्दा
एक लड़की ने मिरी सोच पे ज़ुल्फ़ें रख दीं
फिर उठा याद के आँगन से उदासी का धुआँ
किस ने ताक़ों में जला कर मिरी शामें रख दीं
इश्क़ इतना था कि महफ़ूज़ कहाँ रखते हम
और माँ बाप ने बस्ते में किताबें रख दीं
पेश जब करने लगे सब तिरे जल्वों को ख़िराज
हम ने भी ला के वहाँ तश्त में आँखें रख दीं
ग़ज़ल
हम ने जलते हुए ख़ेमों की वो शामें रख दीं
नाज़िर वहीद