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हम ने जब चाहा कोई आग बुझाने आए | शाही शायरी
humne jab chaha koi aag bujhane aae

ग़ज़ल

हम ने जब चाहा कोई आग बुझाने आए

ग़यास अंजुम

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हम ने जब चाहा कोई आग बुझाने आए
आए तो लोग मगर दिल को जलाने आए

कुछ असर होता नहीं बज़्म-ए-तरब का दिल पर
दर्द का गीत कोई आज सुनाने आए

रास जब आ न सका शहर-ए-ख़िरद का माहौल
वुसअ'त-ए-दश्त-ओ-बयाबाँ में दिवाने आए

भागी जाती है ये दुनिया नई रौनक़ की तरफ़
शहर है उजड़ा हुआ कौन बसाने आए

आज तक जिन को नहीं राह-ए-सदाक़त की ख़बर
हक़्क़-ओ-बातिल का वही फ़र्क़ बताने आए

क्यूँ किसी ग़ैर पे इल्ज़ाम मैं रखता 'अंजुम'
मेरे अपने वो सभी थे जो रुलाने आए