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हम ने होंटों पे तबस्सुम को सजा कर देखा | शाही शायरी
humne honTon pe tabassum ko saja kar dekha

ग़ज़ल

हम ने होंटों पे तबस्सुम को सजा कर देखा

नसरीन नक़्क़ाश

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हम ने होंटों पे तबस्सुम को सजा कर देखा
या'नी ज़ख़्मों को फिर इक बार हरा कर देखा

सारी दुनिया में नज़र आने लगे तेरे नुक़ूश
पर्दा जब चश्म-ए-बसीरत से उठा कर देखा

दूर फिर भी न हुई क़ल्ब-ओ-नज़र की ज़ुल्मत
हम ने ख़ूँ अपना चराग़ों में जला कर देखा

अपना चेहरा नज़र आया मुझे उस चेहरे में
इस के चेहरे से जो चेहरे को हटा कर देखा

वो तअल्लुक़ तिरी इक ज़ात से जो था मुझ को
इस तअल्लुक़ को बहर-ए-हाल निभा कर देखा

बर्फ़ ही बर्फ़ नज़र आती है ता-हद्द-ए-नज़र
ज़िंदगी हम ने तिरी खोज में जा कर देखा

जावेदाँ हो गया हर नग़मा-ए-पुर-दर्द मिरा
मेरे होंटों से ज़माने ने चुरा कर देखा