हम ने चुप रह के जो एक साथ बिताया हुआ है
वो ज़माना मिरी आवाज़ में आया हुआ है
ग़ैर-मानूस सी ख़ुश्बू से लगा है मुझ को
तू ने ये हाथ कहीं और मिलाया हुआ है
मैं उसे देख के लौटा हूँ तो क्या देखता हूँ
शहर का शहर मुझे देखने आया हुआ है
ग़ज़ल
हम ने चुप रह के जो एक साथ बिताया हुआ है
अब्बास ताबिश