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हम ने चुप रह के जो एक साथ बिताया हुआ है | शाही शायरी
humne chup rah ke jo ek sath bitaya hua hai

ग़ज़ल

हम ने चुप रह के जो एक साथ बिताया हुआ है

अब्बास ताबिश

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हम ने चुप रह के जो एक साथ बिताया हुआ है
वो ज़माना मिरी आवाज़ में आया हुआ है

ग़ैर-मानूस सी ख़ुश्बू से लगा है मुझ को
तू ने ये हाथ कहीं और मिलाया हुआ है

मैं उसे देख के लौटा हूँ तो क्या देखता हूँ
शहर का शहर मुझे देखने आया हुआ है