हम ने बाँधे हैं उस पे क्या क्या जोड़
पर चला एक भी न फ़िक़रा जोड़
जोड़ता है जो तू मोहब्बत का
हम से ज़ुन्नार-दार रिश्ता जोड़
सर-ए-दुश्मन न तोड़िए कब तक
मुझ पे चलता है वो हमेशा जोड़
ऐ रफ़ू-गर जो टाँक जामा-ए-तन
तार तार और पुर्ज़ा पुर्ज़ा जोड़
जुल्फ़िक़ार-ए-अली की तुझ को क़सम
सर जुदा जिस से हो वो फ़िक़रा जोड़
निस्बत-ए-ज़ुल्फ़ जैसे सुम्बुल को
वैसे नाफ़े का मुश्क नाफ़ा जोड़
हम उसी को कहेंगे आईना-साज़
दे हमारा जो दिल शिकस्ता जोड़
मज़हरा बे का 'शाद' उर्दू में
जानता हूँ अलिफ़ ही है का जोड़
ग़ज़ल
हम ने बाँधे हैं उस पे क्या क्या जोड़
शाद लखनवी