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हम ने ऐ दोस्त रिफ़ाक़त से भला क्या पाया | शाही शायरी
humne ai dost rifaqat se bhala kya paya

ग़ज़ल

हम ने ऐ दोस्त रिफ़ाक़त से भला क्या पाया

रईस अमरोहवी

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हम ने ऐ दोस्त रिफ़ाक़त से भला क्या पाया
जू-ए-बे-आब है तू मैं शजर-ए-बे-साया

दर्द जो अक़्ल के इसराफ़ से बच रहता है
इश्क़ के क़हत-ज़दों का है वही सरमाया

दीदा-ओ-दिल से गुज़रता है कोई शख़्स अक्सर
जैसे आहू-ए-रमीदा का गुरेज़ाँ साया

कल फ़क़त गेसू-ए-बरहम थे निशान-ए-तशवीश
आज देखा तो उन्हें और परेशाँ पाया

हुस्न से जब भी छिड़ा मार्का-ए-दीदा-ओ-दिल
ख़ुद मिरा इश्क़ मिरे मद्द-ए-मुक़ाबिल आया

मैं हूँ ख़ुद अपनी ही ख़ाकिस्तर-ए-जाँ में मदफ़ून
दफ़्न हो जैसे ख़राबे में कोई सरमाया